होता है क्या ये प्यार वार मैं वो जानता नहीं
मगर तेरे बिन अपनी ज़िन्दगी मैं मानता नहीं
जब एक ज़िंदा लांश बन गया था ये प्रीतम
तब तुम आये संजीवनी बनकर ज़िन्दगी में
तुमने ही भरे मेरे सारे ज़ख्म ऐंसे मरहम बनकर
जैंसे खुदा खुद आया ज़िन्दगी में हमदम बनकर
चलो मेरे साथ सदा के लिए ऐ मेरे हमदम साथिया
बस तुमसे सिर्फ... सिर्फ इतना ही तो चाहता हूँ मैं
मेरे उस रब ने तुम्हे भेजकर अपना वज़ूद दिखाया
मगर उसके संग अब तुझे अपना रब बनाता हूँ मैं
जानता हूँ कि तेरी भी है यहाँ बहुत सी मजबूरियाँ
मगर क्या करूँ अब जरा भी सही न जाये दूरियाँ
तुम चाहते हो सबकी ख़ुशी हो हमारे रिश्ते में यहाँ
मगर उन सबकी ख़ुशी में तेरे संग इक मैं ही कहाँ
जात-पात का घटिया रोड़ा डाल दिया उन्होंने वहाँ
हम दोनों दो ज़िस्म और एक जान बन गये हैं जहाँ
तू बता एक घटिया सोच से तुम हार जाओगे क्या
जिसको ज़िंदा किया तुमने उसे मार जाओगे क्या
नहीं न? तो फिर क्यूँ सोच रही इतना साथ आने में
तेरे-मेरे जैंसा प्यार अब कहाँ मिलेगा इस ज़माने में
लोगो को तो कहने दे वो जो कुछ भी कहते हैं यहाँ
अपने दिल की सुन कि मेरे बिना उसकी हस्ती कहाँ
चल मेरे साथ..... चल मेरे साथ........... चल मेरे साथ
अब यही रह गई अब से मेरी पहली और आखिरी बात
©शायर- प्रीतम "तम्मा"
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