something about the blog..

जो कुछ भी सही और साफ़ मेरे मन में आता है मैं बस वही इस ब्लॉग में लिखता हूँ.. वेंसे भगवान की दया और कुछ बेवफाओं की असीम कृपा से जो कुछ भी लेखन की कला मेरे दिलो दिमाग में बस गई है , उस लेखन कला का मैं न के बराबर अंश ही इस ब्लॉग में प्रस्तुत करता हूँ बाकी असल में जो मेरी लेखन कला है उसका इस्तेमाल तो सही वक़्त आने पर ही करूँगा.. वो क्या है कि रामबाण का इस्तेमाल उचित समय के आने पर ही किया जाता है ..

लेखन ही मेरा जीवन है तो लेखन ही मेरी कला है
इस लेखन को लेकर ही प्रीतम अब तक चला है

:- प्रीतम सिंह नेगी "तम्मा"

21 November 2015

एक जवाब सच्चे आशिक़ का..

अपने प्यार का दम जहाँ में आजकल वही भरते हैं
जिन्हें अपने प्यार पर पुरे विशवास से नाज़ होता है
और यहाँ छुप-छुपकर प्यार करने वालो के दिल में
तो उनके प्यार का अंजाम भी बस एक राज़ होता है
प्यार करना भी आसान है प्यार पाना भी आसान है
मगर प्यार को समझना ही बड़ा ही मुश्किल होता है
जो समझ लेता है अपने प्यार का मतलब गहराई से
उसके एक हाथ में जान तो दूसरे हाथ में दिल होता है
अब प्यार के सागर में किसी को तैरना आता हो न हो
मगर डूबते वक़्त वो अपने हाथ-पैर तो जरूर मरता है
अब वो डूबे या फिर तैर जाये इस प्यार के सागर को
मगर सदा अश्क़ो के साथ अपने प्यार को पुकारता है
अशिक़ो के लिए ये दरिया आग हो या फिर पानी का
वे अपनी महबूबा के नाम से दरिया में कूद ही जाते हैं
ये दुनिया देखती है तमाशा तरह-तरह की बाते करके
दरिया में आशिक तैर जाते हैं या फिर डूब ही जाते हैं
पर विडम्बना ये भी है कि हर आशिक सच्चा नहीं होता
और महबूबा का साथ भी संग उसके पक्का नहीं होता
मगर जहाँ आशिक़ सच्चा और साथ महबूबा का पक्का हो
वहाँ धागा प्रेम का किसी भी हाल में कच्चा नहीं होता
धन्यवाद
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