something about the blog..

जो कुछ भी सही और साफ़ मेरे मन में आता है मैं बस वही इस ब्लॉग में लिखता हूँ.. वेंसे भगवान की दया और कुछ बेवफाओं की असीम कृपा से जो कुछ भी लेखन की कला मेरे दिलो दिमाग में बस गई है , उस लेखन कला का मैं न के बराबर अंश ही इस ब्लॉग में प्रस्तुत करता हूँ बाकी असल में जो मेरी लेखन कला है उसका इस्तेमाल तो सही वक़्त आने पर ही करूँगा.. वो क्या है कि रामबाण का इस्तेमाल उचित समय के आने पर ही किया जाता है ..

लेखन ही मेरा जीवन है तो लेखन ही मेरी कला है
इस लेखन को लेकर ही प्रीतम अब तक चला है

:- प्रीतम सिंह नेगी "तम्मा"

22 December 2015

आखिरी सन्देश

होता है क्या ये प्यार वार  मैं वो जानता नहीं
मगर तेरे बिन अपनी ज़िन्दगी मैं मानता नहीं
जब एक ज़िंदा लांश बन गया था ये प्रीतम
तब तुम आये संजीवनी बनकर ज़िन्दगी में
तुमने ही भरे मेरे सारे ज़ख्म ऐंसे मरहम बनकर
जैंसे खुदा खुद आया ज़िन्दगी में हमदम बनकर
चलो मेरे साथ सदा के लिए ऐ मेरे हमदम साथिया
बस तुमसे सिर्फ... सिर्फ इतना ही तो चाहता हूँ मैं
मेरे उस रब ने तुम्हे भेजकर अपना वज़ूद दिखाया
मगर उसके संग अब तुझे अपना रब बनाता हूँ मैं
जानता हूँ कि तेरी भी है यहाँ बहुत सी मजबूरियाँ
मगर क्या करूँ अब जरा भी सही न जाये दूरियाँ
तुम चाहते हो सबकी ख़ुशी हो हमारे रिश्ते में यहाँ
मगर उन सबकी ख़ुशी में तेरे संग इक मैं ही कहाँ
जात-पात का घटिया रोड़ा डाल दिया उन्होंने वहाँ
हम दोनों दो ज़िस्म और एक जान बन गये हैं जहाँ
तू बता एक घटिया सोच से तुम हार जाओगे क्या
जिसको ज़िंदा किया तुमने उसे मार जाओगे क्या
नहीं न? तो फिर क्यूँ सोच रही इतना साथ आने में
तेरे-मेरे जैंसा प्यार अब कहाँ मिलेगा इस ज़माने में
लोगो को तो कहने दे वो जो कुछ भी कहते हैं यहाँ
अपने दिल की सुन कि मेरे बिना उसकी हस्ती कहाँ
चल मेरे साथ..... चल मेरे साथ........... चल मेरे साथ
अब यही रह गई अब से मेरी पहली और आखिरी बात

©शायर- प्रीतम "तम्मा"

http://tammathewriter.blogspot.com/

आखिरी सन्देश

होता है क्या ये प्यार वार  मैं वो जानता नहीं
मगर तेरे बिन अपनी ज़िन्दगी मैं मानता नहीं
जब एक ज़िंदा लांश बन गया था ये प्रीतम
तब तुम आये संजीवनी बनकर ज़िन्दगी में
तुमने ही भरे मेरे सारे ज़ख्म ऐंसे मरहम बनकर
जैंसे खुदा खुद आया ज़िन्दगी में हमदम बनकर
चलो मेरे साथ सदा के लिए ऐ मेरे हमदम साथिया
बस तुमसे सिर्फ... सिर्फ इतना ही तो चाहता हूँ मैं
मेरे उस रब ने तुम्हे भेजकर अपना वज़ूद दिखाया
मगर उसके संग अब तुझे अपना रब बनाता हूँ मैं
जानता हूँ कि तेरी भी है यहाँ बहुत सी मजबूरियाँ
मगर क्या करूँ अब जरा भी सही न जाये दूरियाँ
तुम चाहते हो सबकी ख़ुशी हो हमारे रिश्ते में यहाँ
मगर उन सबकी ख़ुशी में तेरे संग इक मैं ही कहाँ
जात-पात का घटिया रोड़ा डाल दिया उन्होंने वहाँ
हम दोनों दो ज़िस्म और एक जान बन गये हैं जहाँ
तू बता एक घटिया सोच से तुम हार जाओगे क्या
जिसको ज़िंदा किया तुमने उसे मार जाओगे क्या
नहीं न? तो फिर क्यूँ सोच रही इतना साथ आने में
तेरे-मेरे जैंसा प्यार अब कहाँ मिलेगा इस ज़माने में
लोगो को तो कहने दे वो जो कुछ भी कहते हैं यहाँ
अपने दिल की सुन कि मेरे बिना उसकी हस्ती कहाँ
चल मेरे साथ..... चल मेरे साथ........... चल मेरे साथ
अब यही रह गई अब से मेरी पहली और आखिरी बात

©शायर- प्रीतम "तम्मा"

21 November 2015

एक जवाब सच्चे आशिक़ का..

अपने प्यार का दम जहाँ में आजकल वही भरते हैं
जिन्हें अपने प्यार पर पुरे विशवास से नाज़ होता है
और यहाँ छुप-छुपकर प्यार करने वालो के दिल में
तो उनके प्यार का अंजाम भी बस एक राज़ होता है
प्यार करना भी आसान है प्यार पाना भी आसान है
मगर प्यार को समझना ही बड़ा ही मुश्किल होता है
जो समझ लेता है अपने प्यार का मतलब गहराई से
उसके एक हाथ में जान तो दूसरे हाथ में दिल होता है
अब प्यार के सागर में किसी को तैरना आता हो न हो
मगर डूबते वक़्त वो अपने हाथ-पैर तो जरूर मरता है
अब वो डूबे या फिर तैर जाये इस प्यार के सागर को
मगर सदा अश्क़ो के साथ अपने प्यार को पुकारता है
अशिक़ो के लिए ये दरिया आग हो या फिर पानी का
वे अपनी महबूबा के नाम से दरिया में कूद ही जाते हैं
ये दुनिया देखती है तमाशा तरह-तरह की बाते करके
दरिया में आशिक तैर जाते हैं या फिर डूब ही जाते हैं
पर विडम्बना ये भी है कि हर आशिक सच्चा नहीं होता
और महबूबा का साथ भी संग उसके पक्का नहीं होता
मगर जहाँ आशिक़ सच्चा और साथ महबूबा का पक्का हो
वहाँ धागा प्रेम का किसी भी हाल में कच्चा नहीं होता
धन्यवाद
©tammathewriter.blogspot. in

20 November 2015

एक पल में

एक पल में अपने प्यार से मुझे सातवें आसमान पर बिठा देते हो
दूसरे ही पल में मजबूरियों की आड़ में मुझे ज़मीन पर गिरा देते हो
ऐ तमन्ना तुम मुझे कभी वो हंसना तो कभी ये रोना सिखा देते हो
मैं देखता हूँ सपने तुम्हारे साथ कल के तो तुम नींद से जगा देते हो

19 November 2015

किसी ने प्यार को खुदा कह दिया अपने प्यार को पाकर किसी ने प्यार को झूठा कह दिया अपने प्यार को खोकर





किसी ने प्यार को खुदा कह दिया
अपने प्यार को पाकर
किसी ने प्यार को झूठा कह दिया
अपने प्यार को खोकर
अब जिस जिसने अपने प्यार का
जेंसा अंजाम पाया है
उस उसने ही इस प्यार का मतलब
यहाँ वैंसा ही समझाया है
लोग कहते हैं कि सच्चे आशिक़
अब सिर्फ मज़ार में ही मिलते हैं
पर देखा जाये तो वो आशिक़ भी
अपने इसी संसार में ही दिखते हैं
हाँ कुछ चंद लोगो की दगाबाजी से
दुनिया में ये प्यार झूठा हुआ है
मगर भूल न जाना मेरे मित्रों
उसके बाद भी प्यार खुदा हुआ है
©tammathewriter.blogspot.in

19 March 2015

है यकीन मुझको तुम वापस आओगे


All in one Shayari With Preetam...


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*** 21मार्च-2015***

आज का दिन भी हमें बहुत याद रहेगा

हर लम्हा आज का हर दिन साथ रहेगा

   na na   

शायर-प्रीतम नेगी तम्मा भाई — feeling naughty.

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हाँ नहीं था यकीन मुझे कि फिर से मैं प्रीतम इन राहों में        वापस आऊँगा

तन्हाई की महफ़िलो में रहते-रहते ज़िन्दगी की नई महफ़िल सजाऊँगा
                                              ©शायर-प्रीतम नेगी

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माना कि आज अनजान है ये मेरा शहर मेरे हर किसी काम से

मगर वादा रहा एक दिन जाना जायेगा यही शहर मेरे ही नाम से

                                              ©शायर-प्रीतम नेगी

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09 March 2015