something about the blog..

जो कुछ भी सही और साफ़ मेरे मन में आता है मैं बस वही इस ब्लॉग में लिखता हूँ.. वेंसे भगवान की दया और कुछ बेवफाओं की असीम कृपा से जो कुछ भी लेखन की कला मेरे दिलो दिमाग में बस गई है , उस लेखन कला का मैं न के बराबर अंश ही इस ब्लॉग में प्रस्तुत करता हूँ बाकी असल में जो मेरी लेखन कला है उसका इस्तेमाल तो सही वक़्त आने पर ही करूँगा.. वो क्या है कि रामबाण का इस्तेमाल उचित समय के आने पर ही किया जाता है ..

लेखन ही मेरा जीवन है तो लेखन ही मेरी कला है
इस लेखन को लेकर ही प्रीतम अब तक चला है

:- प्रीतम सिंह नेगी "तम्मा"

17 July 2014

होता यही है इश्क़ में.....

........होता यही है इश्क़ में.....

जल रहा है परवाना और देख रही है शमाँ
होता यही है इश्क़ में फिर तू कहाँ मैं कहाँ
जल रहा है परवाना...........................

गिर जाता है वो परवाना शमाँ को चूमकर
गिर के फिर उड़ता ओ आता वही घूमकर
इश्क में अंधा परवाना होता हमें यही गुमाँ
जल रहा है परवाना और देख रही है शमाँ
होता यही है इश्क़ में फिर तू कहाँ मैं कहाँ

आये होश में परवाना तो हँसी उड़ाये ये ज़माना
कौन भला क्या जाने क्यूँ बन बैठा वो दीवाना
वो टुटा दिल रोये वो कभी यहाँ तो कभी वहाँ

जल रहा है परवाना और देख रही है वो शमाँ
होता यही है इश्क़ में फिर तू कहाँ अर मैं कहाँ

हो जाता वो ताबाह "प्रीतम" चाहत के अंजाम से
फिर जाना जाता है वो एक दिन शायर के नाम से
ओ दुनिया वालो इश्क ये क्यूँ देता है रे ऐंसी सजा

जल रहा है परवाना और देख रही है वो शमाँ
होता यही है इश्क़ में फिर तू कहाँ अर मैं कहाँ

शमाँ के परवाने हज़ार क्या जाने वो क्या है प्यार
जले कितने परवाने भी उसके लिए तो सब बेकार
उसके दिल में होती नहीं क्यूँ वो चाहत दर्द-ए-वफ़ा

जल रहा है परवाना और देख रही है वो शमाँ
होता यही है इश्क़ में फिर तू कहाँ अर मैं कहाँ

©शायर-प्रीतम सिंह नेगी "तम्मा"
Mob- 9634756584